सोमवार, 15 मार्च 2010

महिला आरक्षण के बहाने उतरते नकाब

महिला आरक्षण की जब बात चली है तो कई सारे दोगलापन खुलता जा रहा है। जब इसमें क्रीमी लेयर की बात की जा रही है तो कहा जा रहा है कि यह तो संविधान में नहीं है। दूसरे क्रीमी लेयर का फैसला कोर्ट ने किया था इसलिए लागू है। यही तर्क ओबीसी और एससीएसटी के आरक्षण पर क्यो नहीं लागू करते। अब यह बात की जा रही है कि आरक्षण के प्रश्न पर संविधान सभा में मतभेद था और सिर्फ कुछ वर्षों के लिए लागू किया गया था। लेकिन हम ऐसे किसी संविधान सभा को क्यो स्वीकार कर लें जिसे जमीनी हालात का पता हीं नही। दूसरा आरक्षण के अंदर आरक्षण के तर्क पर यह बात की जा रही है कि इससे समाज बंटेगा। क्या ऐसी बात करने वाले बंदरो को समाज के पता है। भाई समाज तो पहले हीं बंटा हुआ है। अब तो हमें इस सच्चाई का सामना करते हुए इसका इलाज ढूंढा जाए। पहले सारा मीडिया आरक्षण के खिलाफ रो रहा था, आज सब एकाएक समर्थक कैसे बन गये। भई अगर किसी विचार के खिलाफ तो हो तो हर पैरामीटर पर खिलाफ ही रहो। अगर महिला को देना है और उसमें भी जाहिर तौर पर उच्च वर्ग की सशक्त महिलाओ को तो आप समर्थन करने लगे। इसमें भी यही बात किजीए कि यह संविधान के खिलाफ है और जबरदस्ती दी गयी बैशाखी है। लेकिन नहीं, तब तो ये दोगलापन है भाई।

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