शनिवार, 4 जुलाई 2009

साजिश चल रही है देश में

बजट आनेवाला है और सारे अखबार और टीवी चैनल मिल के सरकार पर दबाव बना रहे हैं कि सरकार एक लोककल्याणकारी कार्यक्रम न बनाकर कारपोरेट हितैषी और बाजारवाद को बढ़ावा देने वाली नीतियां बनाये। यानि सर्विस टैक्स में छूट दे। एजुकेशन सेस और सरचार्ज खत्म कर दे। तेल और गैस को अंतर्राष्ट्रीय सट्टा बाजार के कारण होने वाले उतार-चढ़ाव को भुगतने का भार आम जनता को सौंप दे। मगर ऐसी मांग करनेवाले भोंसड़ीवालों को यह जरा भी अहसास नहीं है कि हमारा देश विश्व मानव सूचकांक में सबसे नीचे के पायदान पर है और इस देश की 80 प्रतिशत जनता 20 रुपये प्रतिदिन पर गुजारा कर रही है। अगर सबकुछ सरकार बाजार पर हीं छोड़ दे और हर काम से सरकार अपना हाथ खींच ले तो क्या होगा? या तो लोग भूखे मरने पर मजबूर हो जाएंगे या जो नगरों और महानगरों में समृद्धि का टापू बना हुआ है देश की गरीबी के महासमुद्र में उस टापू पर सारे मिलकर धावा बोलकर तहस नहस कर देंगे। इसलिए वक्त है चेत जाओ। सरकार को करना यह चाहिए कि वह टैक्स में छूट न दे। और ग्रामीण क्षेत्र में अधिकाधिक निवेश करे। दूर्गम क्षेत्रों में उद्योग लगाने वालों के लिए सेज सजाए। जो उस राज्य में उद्योग लगाये जहां खेती मजदूरी का काम काफी कम होता हो और लोगों को रोजगार की जरुरत हो वहां के उद्योगों को टैक्स में छूट दे। नहीं तो ये भूक्खड़ जनता यहां के नीति निर्माताओं और भाग्य विधाताओं के गांड में बांस कर देगी।
सरकार को शिक्षा कोष के साथ-साथ एक पेट्रोल कोष भी बनाना चाहिए। भले ही इसके लिए दो प्रतिशत सेश या सरचार्ज उपर से क्यों ना लगाना पड़े।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें