शुक्रवार, 16 जनवरी 2009
हिंदी मीडीया का दोगलापन
कल मायावती का जन्मदिन था। इस अवसर पर मायावती जी ने कई क्रांतिकारी घोषणाएँ की लेकिन एक नई दुनियाँ अखवार को छोड़कर किसी अखबार ने इसे तवज्जो नहीं दी और एक तरह से नेगेटिव रिपोर्टिंग की। यही पेपर वाले जब उच्चजातिय बुड्ढे नेताओं के हिलने डुलने की खबर को भी फ्रंट पेज पर छापते हैं। जबकि मैं भी एक तथाकथित उच्च जाति से हीं वास्ता रखता हुँ लेकिन मुझे मायावती के कई कदम प्रगतिशील लगते हैं और उसे मीडीया में ज्यादा तबज्जों न दिये जाने पर दुख होता है। कुछ दिन पहले जब मायावती बिना किसी टोटके के परवाह किये बगैर नोयडा गयी थी तो उसे भी मीडीया ने पर्याप्त तवज्जो नहीं दी थी। जबकि उससे पहले के चार-चार मुख्यमंत्री पता नहीं किस दकियानुसी टोटके में फँसकर नोयडा जाना एवायड करते थे। इस बार मुझे मायावती जी की वह योजना काफी अच्छी लगी जिसमें किसी लड़की के 18 वर्ष होने पर उसके परिवार वालो को रुपया दिये जाने की बात है। निश्चित रुप से इससे लड़कियों को बोझ समझनेवाली मानसिकता में थोड़ा बहुत तो बदलाव होगा। इतने महत्वपूर्ण कदम पर तो संपादकिय लिखा जाना चाहिए था। पर इन पूर्वाग्रह से ग्रस्त अखवार वालों ने मुझे वाकई निराश किया।
गुरुवार, 15 जनवरी 2009
लालू यादव इतिहास पुरुष हैं
जब भी बिहार की कहानी लिखी जाएगी तब इतिहास में बिहार का उल्लेख आफ्टर लालू और बिफोर लालू हीं किया जाएगा। क्युँ कि लालू यादव से पहले बिहार में आबादी के बड़े तबके को जातिबाद के नाम पर मुट्ठी भर गंदी मानसिकता के लोग दबाकर रखते थे लेकिन लालू यादव ने उस तबके के मुँह में आवाज दी और उनको उनकी गरिमा का अहसास करबाया। भले ही लालू यादव उनकी जिंदगी में समिरिद्धि नहीं ला सके और दूसरे उच्चवर्गीय नेताओ की तरह ही धोटालों में उलझ कर रह गये। पर उन्होने राज्य की एक बड़ी जनसंख्या के लिए जो भी किया इसके कारण देश हमेशा उनका ऋणी रहेगा। मुझे आज भी कई पढ़े लिखे उच्च शिक्षित लोग भी जातिवाद दुराग्रह से ग्रसित नजर आते हैं जिन्हें देखकर मुझे बड़ी खिन्नता होती है। आखिर हम अपने बच्चों को क्या संस्कार दे रहे हैं। क्या इसी तरह हम देश को प्रगति के पथ पर ले जाएँगे। क्या एसे ही कलाम साहब का सपना पूरा होगा। जिस देश के निवासी का देश के दूसरे निवासी के प्रति सम्मान की भावना ना हो तो भला वह देश क्या प्रगति करेगा।
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