रविवार, 7 जून 2009
महिला आरक्षण
मुझे एक बात समझ में नहीं आती की महिला आरक्षण के मुद्दे पर आरक्षण के अंदर आरक्षण देने में भला क्या बुराई है और किस बात का एतराज है। हमारा देश और समाज जातियों में बिभाजित है। यह एक कड़वी और दुखद वास्तविकता है। अगर कोई इस बात से इनकार करता है तो उनसे यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि क्या वो किसी दूसरी जाति में और उसमें भी तथाकथित निचली जाती में क्या वो रोटी-बेटी का संबंध करने के लिए तैयार है। अगर इसका जबाव नहीं है तो इसका मतलब यह है कि हमारा समाज अभी भी पिछड़ा हुआ है। समाज में अभी भी सड़न व्याप्त है। जब तक हमारी सोसाईटी से यह कोढ़ दुर नहीं होगा। तब तक हमें समाज और देश और कानून में होने वाले हर परिवर्तन यहां तक कि कोई भी परिवर्तन जो हमारी जिंदगी को प्रभावित करता हो, उसमें हमे जाति के पहलू को ध्यान में रखकर हीं निर्णय लेना चाहिए और ये सतत प्रयास करना चाहिए की हम ऐसी और कौन सी व्यवस्था लागू करे कि लोगों के दिमाग से जाति का जहर दूर हो। अगर हम महिला आरक्षण में आरक्षण के अंदर आरक्षण नहीं देगें तो समाज के हर वर्ग को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाएगा। और इलीट तबके की औरतें हीं लोकतंत्र में आगे बढ़ पाएंगी। इसलिए महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण देना चाहिए और आरक्षण के अंदर हीं आरक्षण का प्रावधान हो, अगर इसमें कोई संदेह हो तो नीतिश से सीख लेकर बिहार मॉडल का अनुकरण कर लें।
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